Thursday, 12 January 2017

स्वामी विवेकानन्द का हिन्दुओं के नाम संदेश


तभी और केवल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इस नाम को सुनते ही तुम्हारी रगों में शक्ति की विद्युत-तंरग दौड़ जाय।
तभी और केवल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इस नाम को धारण करने वाला प्रत्येक व्यक्ति- वह चाहे जिस देश का हो, वह चाहे तुम्हारी भाषा बोलता हो अथवा कोई अन्य-प्रथम मिलन में ही तुम्हारा सगे से सगा तथा प्रिय से प्रिय बन जाय ! तभी और केबल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इसको धारण करने वाले किसी भी व्यक्ति का दुःख-दर्द तुम्हारे हृदय को इस प्रकार व्याकुल कर दे मानो तुम्हारा अपना पुत्र संकट में हो ।
तभी और केवल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इस नाम को धारण करने वाला प्रत्येक व्यक्ति- वह चाहे जिस देश का हो, वह चाहे तुम्हारी भाषा बोलता हो अथवा कोई अन्य-प्रथम मिलन में ही तुम्हारा सगे से सगा तथा प्रिय से प्रिय बन जाय ! तभी और केबल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इसको धारण करने वाले किसी भी व्यक्ति का दुःख-दर्द तुम्हारे हृदय को इस प्रकार व्याकुल कर दे मानो तुम्हारा अपना पुत्र संकट में हो । तभी और केवल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो सकोगे, जब तुम उनके लिए सब कुछ सहने को तत्पर रहोगे । उन महान्‌ गुरु गोविन्द सिंह के समान, जिन्होंने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपना रक्त बहाया, रणक्षेत्र में अपने लाडले बेटों का बलिदान होते देखा, पर जिनके लिए, उन्होंने अपना तथा अपने सगे सम्बन्धियों का रक्त चढ़ाया, उनके ही द्वारा परित्यक्त होकर वह घायल सिंह कार्यक्षेत्र से चुपचाप हट गया और दक्षिण जाकर चिरनिद्रा में खो गया । किन्तु जिन्होंने कृत्घ्नतापूर्वक उनका साथ छोड़ दिया था, उनके लिए अभिशाप का एक शब्द भी उस वीर के मुंह न फूटा । यह है आदर्श उस महान्‌ गुरु का !
स्मरण रहे।
यदि तुम अपने देश का कल्याण करना चाहते हो तो तुम में प्रत्येक को गुरु गोविन्द बनना होगा । भले ही तुम्हें अपनें देशवासियों में सहस्रों दोष दिखाई दें पर ध्यान रखना कि उनमें हिन्दू रक्त है । वे तुम्हें हानि पहुंचाने के लिए सब कुछ करते हों तब भी वे प्रथम देवता हैं जिनका तुम्हें पूजन करना है । यदि उनमें से प्रत्येक तुम्हें गाली दें, तब भी तुम्हें उनके लिए स्नेह की भाषा बोलनी है और यदि वे तुम्हें धक्का देकर बाहर कर दें, तब भी तुम कहीं दूर जाकर उस शक्तिशाली सिंह-गोविन्द सिंह के समान मृत्यु की गोद में चुपचाप सो जाना । ऐसे ही व्यक्ति हिन्दू कहलाने का वास्तविक अधिकारी है, यही आदर्श हमारे सामने रहना चाहिए । आओ, हम अपने समस्त विवादों एवं आपसी कलह को समाप्त कर स्नेह की इस भव्य-धारा को सर्वत्र प्रवाहित कर दें ।


           नरेन्द्रनाथ दत्त
(विश्ववरेण्य स्वामी विवेकानन्द)

Monday, 2 January 2017

डिजीटल इंडिया को सुदृढ़ करने की जरूरत

डिजीटल इंडिया को सुदृढ़ करने की जरूरत

02 JAN 2017
सरकार ने डिजीटल इंडिया की शुरूआत तो की, लेकिन उस पर ध्यान इतना केन्द्रित नहीं किया कि यह योजना अपने लक्ष्य को पूरा कर सके। विमुद्रीकरण की घोषणा से प्रधानमंत्री ने डिजीटल लेन-देन की बात तो कही, परन्तु डिजीटल इंडिया को फिर भी याद नहीं किया। 8 नवम्बर से लेकर आज तक सरकार लगातार डिजीटल लेन-देन के बारे में बहुत कुछ कर रही है। इसे प्रोत्साहन देने के लिए कई तरह की छूट, ईनाम आदि की घोषणा कर रही है। सरकार अगर वास्तव में डिजीटल लेन-देन को बढ़ावा देना चाहती है, तो सबसे पहले उसे डिजीटल इंडिया को मजबूत बनाना होगा।डिजीटल इंडिया का जो स्वप्न देखा गया है, उसके अनुसार डिजीटल बैंकिंग के क्षेत्र में 2019 तक भारत विश्व के देशों में अग्रणी होगा।

इस स्वप्न में भारत के सभी नागरिकों को डिजीटल रूप से सशक्त करने का भी लक्ष्य रखा गया है। लेकिन धरातल के स्तर पर तथ्य कुछ और ही कहते हैं –
डिजीटल इंडिया की सफलता के लिए एक अच्छी संयोजक प्रणाली पहली आवश्यकता है। और इसको सफल बनाने के लिए पूरे देश में ऑप्टिकल फाइबर केबल का जाल बिछाना होगा। इससे लगभग5 लाख गांव जोड़े जाएंगे। सन् 2017 का यह लक्ष्य तो अभी बहुत दूर है। मार्च 2016 के लक्ष्य में एक लाख ग्राम पंचायतों को इससे जोड़ा जाना था, जिसमें से मात्र 8,000 ग्राम पंचायत ही जुड़ पाए थे। अक्टूबर 2016 तक यह संख्या बढ़कर मात्र 15,000 हो पाई है।
अगर डिजीटल इंडिया अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार चलता, तो अभी तक 2,00,000 गाँवों को इंटरनेट से जोड़ा जा चुका होता। साथ ही ई-एज्यूकेशन, ई-कॉमर्स और ई-बैंकिंग जैसी सेवाएं भी शुरू हो चुकी होतीं। इससे दूर-दराज के क्षेत्रों को बहुत लाभ पहुंचता। ग्राम पंचायतों में बैंकिंग संपर्क वाले लोग मिनी-बैंक शाखा की तरह काम कर रहे होते। इससे उत्तराखंड जैसे इलाकों में 20-30 कि.मी. की दूरी तय करके बैंक शाखा पहुंचने वाले लोगों की जिन्दगी बहुत आसान हो जाती।
डिजीटल इंडिया कार्यक्रम का लक्ष्य 2019 तक लगभग 10 करोड़ रोजगार उपलब्ध कराना भी है। इसमें से कुछ करोड़ का लक्ष्य तो प्राप्त कर लिया गया है। लेकिन डिजीटल इंडिया की कमजोरी के कारण विमुद्रीकरण के दौर में जिन लाखों लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है, उसके लिए कौन जिम्मेदार है?
सरकार ने डिजीटल इंडिया का लक्ष्य प्राप्त किए बिना ही जिस प्रकार से भ्रष्टाचार और काले धन को खत्म करने के नाम पर विमुद्रीकरण किया है, इसे बुद्धिमानीपूर्ण कदम नहीं कहा जा सकता।

बहरहाल, डिजीटल लेन-देन से भ्रष्टाचार खत्म नहीं होने वाला है। दूसरे, मोबाइल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए विमुद्रीकरण करना भी आवश्यक नहीं था। सरकार को अपने डिजीटल इंडिया कार्यक्रम को इतना सशक्त बनाना होगा कि समाज अपने आप ही मुद्रारहित (Cashless) लेन-देन में सहूलियत महसूस करने लगे। बात तभी बनेगी।

‘इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित मनोज गैरोला के लेख पर आधारित।