तभी और केवल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इस नाम को सुनते ही तुम्हारी रगों में शक्ति की विद्युत-तंरग दौड़ जाय।
तभी और केवल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इस नाम को धारण करने वाला प्रत्येक व्यक्ति- वह चाहे जिस देश का हो, वह चाहे तुम्हारी भाषा बोलता हो अथवा कोई अन्य-प्रथम मिलन में ही तुम्हारा सगे से सगा तथा प्रिय से प्रिय बन जाय ! तभी और केबल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इसको धारण करने वाले किसी भी व्यक्ति का दुःख-दर्द तुम्हारे हृदय को इस प्रकार व्याकुल कर दे मानो तुम्हारा अपना पुत्र संकट में हो ।
तभी और केवल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इस नाम को धारण करने वाला प्रत्येक व्यक्ति- वह चाहे जिस देश का हो, वह चाहे तुम्हारी भाषा बोलता हो अथवा कोई अन्य-प्रथम मिलन में ही तुम्हारा सगे से सगा तथा प्रिय से प्रिय बन जाय ! तभी और केबल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो, जब इसको धारण करने वाले किसी भी व्यक्ति का दुःख-दर्द तुम्हारे हृदय को इस प्रकार व्याकुल कर दे मानो तुम्हारा अपना पुत्र संकट में हो । तभी और केवल तब ही तुम हिन्दू कहलाने के अधिकारी हो सकोगे, जब तुम उनके लिए सब कुछ सहने को तत्पर रहोगे । उन महान् गुरु गोविन्द सिंह के समान, जिन्होंने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपना रक्त बहाया, रणक्षेत्र में अपने लाडले बेटों का बलिदान होते देखा, पर जिनके लिए, उन्होंने अपना तथा अपने सगे सम्बन्धियों का रक्त चढ़ाया, उनके ही द्वारा परित्यक्त होकर वह घायल सिंह कार्यक्षेत्र से चुपचाप हट गया और दक्षिण जाकर चिरनिद्रा में खो गया । किन्तु जिन्होंने कृत्घ्नतापूर्वक उनका साथ छोड़ दिया था, उनके लिए अभिशाप का एक शब्द भी उस वीर के मुंह न फूटा । यह है आदर्श उस महान् गुरु का !
स्मरण रहे।
यदि तुम अपने देश का कल्याण करना चाहते हो तो तुम में प्रत्येक को गुरु गोविन्द बनना होगा । भले ही तुम्हें अपनें देशवासियों में सहस्रों दोष दिखाई दें पर ध्यान रखना कि उनमें हिन्दू रक्त है । वे तुम्हें हानि पहुंचाने के लिए सब कुछ करते हों तब भी वे प्रथम देवता हैं जिनका तुम्हें पूजन करना है । यदि उनमें से प्रत्येक तुम्हें गाली दें, तब भी तुम्हें उनके लिए स्नेह की भाषा बोलनी है और यदि वे तुम्हें धक्का देकर बाहर कर दें, तब भी तुम कहीं दूर जाकर उस शक्तिशाली सिंह-गोविन्द सिंह के समान मृत्यु की गोद में चुपचाप सो जाना । ऐसे ही व्यक्ति हिन्दू कहलाने का वास्तविक अधिकारी है, यही आदर्श हमारे सामने रहना चाहिए । आओ, हम अपने समस्त विवादों एवं आपसी कलह को समाप्त कर स्नेह की इस भव्य-धारा को सर्वत्र प्रवाहित कर दें ।
नरेन्द्रनाथ दत्त
(विश्ववरेण्य स्वामी विवेकानन्द)

