Saturday, 17 December 2016

बच्चो के प्रति प्रेम

आपको अपने बच्चे से प्यार के लिए , उनके हर गलती में प्यार छुपा होता है ||


फादर फोर्गेट्स (हर पिता यह याद रखे )

                                                                   ब्ल्यू लीविंगस्टन लारनेड 

एक पिता अपे छोटे बच्चे से कहता है , और बच्चा सोया हुआ है

सुनो बेटा ! मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ |  तुम गहरी नींद ने सो रहे हो |  तुम्हारा नन्हा सा हाथ तुम्हारे नाजुक गाल के नीचे दबा है |  और तुम्हारे पसीना - पसीना ललाट पर घुंघराले बाल बिखरे हुये है | मैं तुम्हारे कमरे में चुपके से दाखिल हुआ हूँ ,अकेला | अभी कुछ मिनट पहले जब मैं लायब्रेरी में अखवार पढ़ रहा था , तो मुझे बहुत पश्चाताप हुआ | इसीलिए तो आधी रात को तुम्हारे पास खड़ा हूँ ,किसी अपराधी की तरह |
जिन बातों के बारे में मैं सोच रहा था | वह ये है ,बेटें | मैं आज तुम पर बहुत नाराज हुआ | जब तुम स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे थे , तब मैं तुम्हे खुब डाटा ,_ _ _तुमने टाबेल के बजाये पर्दे से हाथ पोछ लिए थे | तुम्हारे जूते गंदे थे , इस बात पर मैंने भी तुम्हे कोशा | तुमने फर्श पर इधर - उधर चीजे फेक रखी थी _ _ _इस पर मैंने भी तुम्हे भला- बुरा कहा |


नास्ता करते वक्त भी मैं तुम्हारी एक के बाद एक गलतियाँ निकालता रहा | तुमने डाइनिंग टेवल पर खाना बिखड़ा दिया था | खाते समय तुम्हारे तुम्हारे मुह से चपड़ -चपड़ की आवाज आ रही थी | मेज पर तुमने कोहनियों ,भी टिका रखी थी | तुमने ब्रेड पर बहुत सारा मक्खन भी चुपड़ लिया था | यही नहीं जब मैं ऑफिस जा रहा था और तुम खेलने जा रहे थे और तुमने मुड़कर हाथ हिला कर " बॉय -बॉय , डैडी" कहा था , तब भी मैंने भृकुटी तानकर टोका था ,"अपनी कॉलर ठिक करो |"
शाम को भी मैंने यही सब किया | ऑफिस से लौटकर मैंने देखा कि तुम दोस्तों के साथ मिट्टी में खेल रहे थे | तुम्हारे कपड़े गंदे थे , तुम्हारे मोजों में छेद हो गया थे | मैं तुम्हे पकड़कर ले गया और तुम्हारे दोस्तों के सामने तुम्हे अपमानित किया | मोज़े महँगे है -जब तुम्हे खरीदना पड़ेगा तब तब तुम्हे इसकी कीमत समझ में आयेगी | जरा सोचो तो सही ,एक पिता अपने बेटे का इससे ज्यादा दिल किस तरह दुखा सकता है ?
क्या तुम्हे याद है जब मैं लाइब्रेरी में पढ़ रहा तब तुम रात को मेरे कमरे में आये थे , किसी सहमे हुए मृगछौनी की तरह | तुम्हारी आँखे बता रही थी की तुम्हे कितनी चोट पहुँची है | और मैंने अखवार के ऊपर से देखते हुए पढने में बाधा डालने के लिये तुम्हें झिड़क दिया था ,"कभी तो चैन से रहने दिया करो | आब क्या बात है ?"और तुम दरवाजे पर ही ठिठक गये थे |

तुमने कुछ नहीं कहा | तुम भाग कर आये ,मेरे गले में बाँहे डालकर मुझे चूमा और "गुडनाईट " करके चले गये | तुम्हारी नन्ही बांहों की जकड़न बता रही थी की तुम्हारे दिल में ईश्वर ने प्रेम का ऐसा फूल खिलाया था जो इतनी उपेक्षा के बाद भी नहीं मुरझाया | और फिर तुम सीढियों पर खट- खट करते चढ़ गये |
तो बेटे , इस घटना के कुछ ही देर बाद मेरे हाथो से अख़बार छुट गया और मुझे ग्लानी हुई | यह क्या होता जा रहा है मुझे ? गलतियाँ ढूढने की , डांटने - डपटने की आदत सी पड़ती जा रही है मुझे | अपने बच्चे के बचपने का मैं यह पुरस्कार दे रहा हूँ | ऐसा नहीं है , बेटे , की मैं तुम्हे तुम्हे प्यार नहीं करता , पर मैं एक बच्चे से जरुरत से ज्यादा उम्मीदें लगा बैठा था | मैं तुम्हारे व्यवहार को अपनी उम्र के तराजू पर तौल रहा था |



तुम इतने प्यारे हो , इतने अच्छे और सच्चे | तुम्हारा नन्हा सा दिल इतना बड़ा है जैसे चौड़ी पहाड़ियों के पीछे से उगती सुबह | तुम्हारा बड़प्पन इसी बात से साबित होता है की दिन भर डाँटते रहने वाले पापा को भी तुम रात को ''गुड नाईट किस '' देने आये | आज की रात और कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है , बेटे | मैं अँधेरे में तुम्हारे सिरहाने आया हूँ और मैं यहाँ घुटने टिकाये बैठा हूँ शर्मिंदा |
यह एक कमजोर पश्चाताप है | मैं जानता हूँ कि अगर मैं तुम्हे जगाकर यह सब कहूँगा , तो शायद तुम नहीं समझोगे | पर कल से मैं सचमुच तुम्हारा प्यारा पापा बनकर दिखाऊंगा | मैं तुम्हारे साथ खेलूँगा , तुम्हारे मजेदार बातें मन लगाकर सुनूँगा |तुम्हारे साथ खुलकर हँसूँगा और तुम्हारी तकलीफों को बाटूंगा | आगे से जब भी मैं तुम्हे डांटने के लिये मुंह खोलूँगा ,तो इससे पहले अपनी जीभ को अपने दांतों से दबा लूँगा | मैं बार -बार किसी मंत्र की तरह यह कहना सीखूंगा ,''वह तो अभी बच्चा है ...छोटा सा बच्चा ! ''
मुझे अफसोस है कि मैंने तुम्हे बच्चा नहीं , बड़ा मान लिया था | परन्तु आज जब मैं तुम्हे गुडी -मुड़ी और थका -थका पलंग पर सोया देख रहा हूँ ,बेटे ,तो मुझे एहसास होता है कि तुम अभी बच्चे ही तो हो | कल तक तुम अपनी माँ की बाँहों में थे ,उसके काँधे पर सिर रखे | मैंने तुमसे कितनी ज्यादा उम्मीदें की थीं ,कितनी ज्याद...



नोट : - हर वह पिता को जो अपने बच्चे को छोटी - मोटी गलती पर डाटते है||

Thursday, 8 December 2016

हम से है समाज

                                  हम से है समाज

समाज की अहमियत समझकर भी हम अक्सर दुसरों को उचित सम्मान नहीं दे पाते |
असमानता दूर करने की बात किसी व्यवस्था या विचार से ज्यादा हमारी सोच , हमारे व्यवहार पर निर्भर करती है | क्यों न ऐसे समाज बुने , जो सहअस्तित्व की राह पर आगे बढ़े | घर की चारदीवारी से बाहर कदम रखते ही समाज बांहे फैलाए तैयार दिखता है कुछ लोग यह कह ने से गुरेज नहीं करतेकि हमने जो कुछ पाया , अपने पुरुषार्थ के बल पर , इस समाज नें हमें क्या दिया ?  


                        BHASKAR YOUNG GENERATION

वास्तव में ,समाज हमें वही देता है , जो हम उसे देते है | 
  
सड़क पर लम्बे जाम का दोष उन्हें देते है , जिन्हें हम जानते भी नहीं |

 क्या हम नियमो का पूरी तरह पालन कर रहे है ?  

इसी तरह यदि आप शिक्षित है , अच्छे पद पर है , तो किसी को अनपढ़ -
गंवार कहकर उसकी खिल्ली उड़ाने की बजाय , उसे शिक्षित करने के बारे में सोचना चाहिए पैसा ,


 प्रतिष्ठा है , तो गरीबी -तंगहाली को कोसने के बजाय इसे मिटाने के लिए आगे आना चाहिए |||

समाजशास्त्री रितु सारस्वत की मने तो अपने समाज से असहयोगात्मक रवैया
अपनाने का परिणाम घातक है |

आएये पहल करे |

 किसी लाचार को सड़क पार कराने में मदद के लिए आगे आए|||

उस बच्चे के चेहरे पर मुस्कान लाएं, ख़ुशी जिससे रूठ गई है ....


अच्छा लगता है , जब बेटी की शादी में मदद के लिए दूधवाला आपके पास आता है | 


                      जिन्दगी की मुस्कान छलक जाएगी आपके चेहरे पर , जब आप समाज के कमजोर और
बंचित समझे जाने वाले लोगों का सहारा बनने आगे आएंगे  |

                              यही इंसानियत का तकाजा है ||

मै आपके समाज से आप हमारे समाज से ...........

              ( मै और आप )


 आप हमे यहाँ भी मिल सकते है ,यहाँ क्लीक करे

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ये twitter के लिए @BHASKARYG 

BHASKAR YOUNG GENERATION

हम से है समाज

Monday, 24 October 2016

राजा भोज और व्यापारी

यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि जैसा भाव हमारे मन मेे होता है वैसा ही भाव सामने वाले के मन में आता है। इस सबंध में एक ऐतिहासिक घटना सुनी जाती है जो इस प्रकार है-

*Raja Bhoj Ki Kahani*
राजा भोज की कहानी कहते हैं कि एक बार राजा भोज की सभा में एक व्यापारी ने प्रवेश किया। राजा ने उसे देखा तो देखते ही उनके मन में आया कि इस व्यापारी का सबकुछ छीन लिया जाना चाहिए। व्यापारी के जाने के बाद राजा ने सोचा –

मै प्रजा को हमेशा न्याय देता हूं। आज मेेरे मन में यह अन्याय पूर्ण भाव क्यों आ गया कि व्यापारी की संपत्ति छीन ली जाये?
उसने अपने मंत्री से सवाल किया मंत्री ने कहा, “इसका सही जवाब कुछ दिन बाद दे पाउंगा, राजा ने मंत्री की बात स्वीकार कर ली। मंत्री विलक्षण बुद्धि का था वह इधर-उधर के सोच-विचार में सयम न खोकर सीधा व्यापारी से मिलने पहूंचा। व्यापारी से दोस्ती करके उसने व्यापारी से पूछा, “तुम इतने चिंतित और दुखी क्या हो? तुम तो भारी मुनाफे वाला चंदन का व्यापार करते हो।”
व्यापारी बोला, “धारा नगरी सहित मैं कई नगरों में चंदन की गाडीयां भरे फिर रहा हूं, पर चंदन इस बार चन्दन की बिक्री ही नहीं हुई! बहुत सारा धन इसमें फंसा पडा है। अब नुकसान से बच पाने का कोई उपाय नहीं है।
व्यापारी की बातें सुन मंत्री ने पूछा, “क्या अब कोई भी रास्ता नही बचा है?”
व्यापारी हंस कर कहने लगा अगर राजा भोज की मृत्यु हो जाये तो उनके दाह-संस्कार के लिए सारा चंदन बिक सकता है।

मंत्री को राजा का उत्तर देने की सामग्री मिल चुकी थी। अगले दिन मंत्री ने व्यापारी से कहा कि, तुम प्रतिदिन राजा का भोजन पकाने के लिए एक मन (40 kg) चंदन दे दिया करो और नगद पैसे उसी समय ले लिया करो। व्यापारी मंत्री के आदेश को सुनकर बड़ा खुश हुूआ। वह अब मन ही मन राजा की लंबी उम्र होने की कामना करने लगा।
एक दिन राज-सभा चल रही थी। व्यापारी दोबारा राजा को वहां दिखाई दे गया। तो राजा सोचने लगा यह कितना आकर्षक व्यक्ति है इसे क्या पुरस्कार दिया जाये?
राजा ने मंत्री को बुलाया और पूछा, “मंत्रीवर, यह व्यापारी जब पहली बार आया था तब मैंने तुमसे कुछ पूछा था, उसका उत्तर तुमने अभी तक नहीं दिया। खैर, आज जब मैंने इसे देखा तो मेरे मन का भाव बदल गया! पता नहीं आज मैं इसपर खुश क्यों हो रहा हूँ और इसे इनाम देना चाहता हूँ!

मंत्री को तो जैसे इसी क्षण की प्रतीक्षा थी। उसने समझाया-
महाराज! दोनों ही प्रश्नों का उत्तर आज दे रहा हूं। जब यह पहले आया था तब अपनी चन्दन की लकड़ियों का ढेर बेंचने के लिए आपकी मृत्यु के बारे में सोच रहा था। लेकिन अब यह रोज आपके भोजन के लिए एक मन लकड़ियाँ देता है इसलिए अब ये आपके लम्बे जीवन की कामना करता है। यही कारण है कि पहले आप इसे दण्डित करना चाहते थे और अब इनाम देना चाहते हैं।
मित्रों, अपनी जैसी भावना होती है वैसा ही प्रतिबिंब दूसरे के मन पर पड़ने लगता है। जैसे हम होते है वैसे ही परिस्थितियां हमारी ओर आकर्षित होती हैं। हमारी जैसी सोच होगी वैसे ही लोग हमें मिलेंगे। यहीं इस जगत का नियम है – हम जैसा बोते हैं वैसा काटते हैं…हम जैसा दूसरों के लिए मन में भाव रखते हैं वैसा ही भाव दूसरों के मन में हमारे प्रति हो जाता है!
अतः इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि हमेशा औरों के प्रति सकारात्मक भाव रखें।
BHASKAR YOUNG GENERATION

Saturday, 22 October 2016

Your attitude

There was a man who made his living spelling balloons at a fair. He had balloons of many different colors , Including red , yellow ,blue, and green . Whenever business was show , he  would release a helium -filled balloon into the air. When the children saw the balloons go up , they all wanted one . They would come up to him , buy a balloon and his sales would go up . All day, he continued to release a balloon whenever sales were slow . One day , the balloon man felt someone tugging at his jacket . He turned around and a little boy asked ,  If you release a black balloon , will that also fly ?
   Moved by the boys concern , the man replied gently , " Son, it is not the color of the balloon, it is what's inside that makes it go up."
My Dear friends ...
THE same principal applies to our lives . It's what's inside that counts and what's inside of  us that makes us go up is our attitude .
Williams James of Harvard University  said ,
" The greatest discovery of my generation is that human beings can alter their lives by altering their attitudes of mind."

Wednesday, 19 October 2016

Success of life

SUCCESS doesn't mean an absence of problem of problems, it is overcomeing problems. Success is not measured by how high we go up in life , but how many times we bounce back when we fall down.

BHASKAR YOUNG GENERATION

Wednesday, 21 September 2016

SHOW CONSIDERATION


दूसरो का ख़याल रखना यह दिखाता है की हम  

उनकी परवाह करते है 

BHASKAR YOUNG GENERATION



एक दिन एक दस साल का बच्चा एक आइसक्रीम की दुकान पर गया और टेबल पर बैठ कर एक महिला वेटर से पूछा, एक कोन आइसक्रीम कितने की है ? उसने कहा ₹75 की है । बच्चा हाथ में पकड़े सिक्कों को गिनने लगा , फिर उसने पूछा छोटी वाली आइसक्रीम कितने की है ? बेटर ने बेसब्री से कहा ₹65 की । लड़का बोला, मुझे  छोटा कप ही देदो । लड़का अपना आइसक्रीम खाया पैसा दिया और चला गया । जब बेटर खाली प्लेट उठाने के लिए आए तो उसने जो कुछ देखा वह बात उसके मन को छू गई, वहां ₹10 टिप के रखे हुए थे । उस छोटे बच्चे ने उस बेटर का ख्याल किया । उसने संवेदनशीलता दिखाई  थी उसने खुद से पहले दूसरों के बारे में सोचा।।।

अगर हम सब एक दूसरे के लिए उस छोटे बच्चों के तरह सोचें तो यह दुनिया कितनी हसीन हो जाएगी।।।

               डिअर फ्रेंड्स दूसरों को ख्याल करें और नम्रता व शिष्टाचार दिखाएं।

नोट :- यदि यह कोटेशन आपको अच्छा लगा तो आप अपने चाहने वालों और दोस्तों को बताएं और 
                                    मुझे यहाँ कॉमेंट करें 
                                                                                            रवि भास्कर सिंह 
                                                                                                  धन्यवाद

Tuesday, 20 September 2016

अगर विवाद का निपटारा आपस में कर लें तो तीसरा उससे फायदा नहीं उठा सकता


सोच - समझ  कर  खुद ही फैसला कर लेता 



BHASKAR YOUNG GENERATION 


कमनी नाम का एक नर पक्षी पेड़ पर घोंसला बनाकर मजे से रहता था | एक दिन वह दाना - पानी के चक्कर में अच्छे फसल वाले खेत में गया | वहा खाने - पीने की मौज से वह बड़ा खुश हुआ | उस खुशी में वह अपना घोंसला ही भूल गया और वही रहने लगा | उधर शाम को चतुरंग नाम का एक खरगोश उस पेड़ के पास आया , जहाँ कमनी का घोसला था | घोसला ज्यादा ऊँचा नहीं था , पर था काफी बड़ा | चतुरंग को कमनी का घोसला पसंद आ गया , और वह वही रहने लगा | कमनी खेत में बिखरे अनाज खा-खाकर मोटा ताजा हो गया | एक दिन उसे अपना घोंसले की याद आई , तो वह वह वापस लौटा | उसने देखा की घोंसले में चतुरंग आराम से बैठा है | उसने खरगोश से कहा , चलो निकलो मेरे घर से | खरगोश शांति से जवाब देने लगा , यह तो मेरा घर है | तुम नहीं जानते की कोई एक बार कुआँ , तालाव या पेड़ छोड़कर जाता है , तो वह अपना हक़ भी गंवा देता है | यह सुनकर कमनी कहने लगा , इस तरह बहस करने से कुछ हासिल नहीं होगा | किसी तीसरे के पास चलते हैं | वह जो फैसला करेगा , वैसा ही होगा | वही पास में मार्जार नाम की बिल्ली बैठी थी | दोनों उसके पास गय और अपनी समस्या बताई | साथ ही उन्होंने यह भी कहा की आपकी नजर में जो झूठा है , उसे आप खा लें | मार्जार ने कहा , अरे रे ! यह तुम कैसी बात कर रहे हो | झूठे को खाने की काम मुझसे न होगा | मैं सिर्फ न्याय दूंगी | और फिर उसने धीरे से कहा , एक बात तुम लोगो के कान में कहना है | जरा करीब तो आओ | दोनों उसके बिल्कुल करीब गय | फिर क्या ? मार्जार ने करीब आए खरगोश को पंजे में पकड़ कर मुंह से चिड़िए को भी नोच लिया | इस तरह उसने दोनों का काम तमाम कर दिया | 

नोट : - अगर विवाद का निपटारा आपस में कर लें तो तीसरा उससे फायदा नहीं उठा सकता |

             SO DEAR FRIENDS SATH RAHIYE OR EK DUSRO SE PREM KARIYR ...

                                                रवि भास्कर सिंह 
                                                    धन्यवाद 

Monday, 19 September 2016

सफल होना है तो Time Table नहीं To Do List बनाएँ!

सफल होना है तो Time Table नहीं To Do List बनाएँ!

 क्या है यह TO DO LIST ?                                                                                                            आपने school days में मैं अक्सर पढने के लिए Time Table बनाया करता था, I am sure आप भी बनाते रहे होंगे…या अगर अभी आप एक student हैं तो शायद किसी टाइम टेबल को follow करने की कोशिश कर रहे होंगे! 



                                 टू डू लिस्ट बनाएं और अपनी प्रोडक्टिविटी बढाएं

                                         

मुझे लगता है पढाई और टाइम टेबल का सम्बन्ध बहुत नेचुरल है….स्कूल में हमें हमेशा कब किस दिन किस subject का period होगा इसके लिए टाइम टेबल बनवाया जाता था…तो शायद हमारे माइंड में जाने अनजाने ये बात बैठ गयी कि पढने के लिए टाइम टेबल ही बनाया जाता है।
और चूँकि यही बात हमारे पेरेंट्स के लिए भी लागू होती है इसलिए वो भी पढने का बस एक ही तरीका जानते थे, और अक्सर उनके मुंह से ये सुनने को मिलता था–

                                                                        टाइम टेबल बना कर पढो।

और यहीं से हमारे अन्दर Time Table बनाने की habit पड़ जाती है। इसके बाबजूद हम लोग कभी टाइम का important  नही देते है | यह लगभग - लगभग लोगो की आदत नहीं सुधर पाती है | हम ने कई बार टाइम टेबल बनया पर ज्यदा से ज्यदा एक दिन फॉलो कर पाते है |   
                खैर बचपन और लड़कपन की बात तो ठीक है, बड़े होने पर भी हम ऐसा ही करते हैं अंतर बस टाइम टेबल में mention किये गए आइटम्स में आ जाता है….पहले जहाँ हम Physics, Chemistry, Maths पढने का समय लिखा करते थे वहीँ अब हम….उठना है…वाक पे जाना है…काम करना है…राशन लाना है… जैसी चीजें लिख देते हैं।
         आप सोच सकते हैं कि इसमें बुराई क्या है? टाइम टेबल बना कर काम करना तो अच्छी चीज है!
बिलकुल अच्छी चीज है….अगर वो फॉलो हो पाए, तब!
आपमें से ज्यादातर लोग इस बात से agree करेंगे कि स्कूल डेज में पढने के लिए बनाए गए टाईम टेबल कभी 2-3 दिन से अधिक फॉलो नहीं हो पाते थे…और हम अक्सर एक नया टाइम टेबल बनाया करते थे…isn’t it?
और बड़े होने पर भी more or less ऐसा ही होता है, हम अपना एक रूटीन डिजाईन करते हैं…रोज सुबह पांच बजे उठेंगे…walk पे जायेंगे…and all that…. और बहुत बार तो हम इसे पहले दिन ही नहीं execute कर पाते…और जल्द ही वो रूटीन डस्ट बिन में चला जाता है। क्यों होता है न ऐसा?  🙂
चलिए, अगर ये चीज कुछ लोगों के साथ हो रही होती तो भी हम कह सकते थे कि टाइम टेबल एक effective tool है लेकिन कुछ लोग उसे सही से use नहीं कर पाते….पर यहाँ तो उल्टा ही case है ….इक्का-दुक्का लोग ही टाइम-टेबल के हिसाब से चल पाते हैं, majority flunks.
इसलिए बरसों से चीजों को effectively करने के लिए time table बना कर काम करने का जो approach हमारे दिमाग में बैठा है उसे निकाल दीजिये…और जान लीजिये कि for majority of people
Time Table in itself is an ineffective tool.
                  QUESTION        यदि आप कहेंगे की तो मैं क्या करू  ?

                   ANSWER          डिअर सिंपल  है टू डू लिस्ट बनावो |


डिअर फ्रेंड्स आप जानना चाहते होंगे की    TO DO LIST  कैसे बनाये और क्यों बनाये , डिअर फ्रेंड्स
आपका दोस्त रवि भास्कर (BHASKAR) यह बताने के लिए है |


BHASKAR YOUNG GENERATION



Ok, मान लिया कि टाइम टेबल काम नहीं करता…लेकिन सिर्फ ये बता देने से क्या होगा…effective solution तो तब निकेगा जब आप इसका कोई उपाय बताएँ ???
मैं वाही बता रहाक हूँ |
YOUR SOLUTION IS HEAR ...

To-Do List बनाएं!

दोस्तों, दुनिया के ज्यादातर सफल लोग To Do List को productivity increase करने के सबसे कारगर टूल के रूप में देखते हैं और लाइफ में सक्सेसफुल होने के लिए इस टूल का यूज करने की सलाह देते हैं.




क्या होती है To-Do List?


To-Do List यानि एक ऐसी लिस्ट जिसमे आप लिखते हैं कि आज आपको क्या-क्या करना है।

For example : एक student की टू-डू लिस्ट हो सकती है:

  • केमिस्ट्री का असाइनमेंट करना है
  • स्कूल जाना है
  • ट्यूशन जाना है
  • क्रिकेट मैच खेलना है
  • ह्यूमन एनाटोमी स्टडी करना है
  • Independence Day Speech तैयार करनी है
  • GIRL FRIEND के साथ मूवी देखने जाना  ETC..

डिअर फ्रेंड्स आप यहाँ https://bhaskaryounggeneration.blogspot.in/ पर पढ़ रहे है यदि आपको अच्छा लगे तो या कोई शिकायत हो तो अपना विचार लिखे 


To-Do List को कैसे यूज किया जाए:

बहुत से लोग To-Do List के बारे में जानते हैं पर वो ये नहीं जानते कि exactly इसे use कैसे किया जाए। टू-डू लिस्ट का सही उपयोग करने के 3 steps हैं:
Step 1) To-Do List बनाएं:
अधिकतर leaders एंड personal development gurus To-Do List को रात में सोने से पहले या सुबह-सुबह उठ कर बनाने की सलाह देते हैं. Personally, मुझे ये काम सुबह करना अच्छा लगता है क्योंकि इसमें किसी निश्चित समय उठने की बाध्यता नहीं रहती, मैं जब सुभ उठ कर थोड़ा सेटल हो जाता हूँ तब लिस्ट तैयार कर लेता हूँ।
To-DO List बनाते समय आप आज के जो काम हैं उन्हें randomly एक diary या छोटे से spiral pad में लिख लें, इसमें ये important नहीं है कि जो ज़रूरी काम है उसे पहले लिखें, बस जो भी माइंड में आये उस काम को नोट कर लें, जैसा कि ऊपर उदाहरण में बताया गया है।
इसे बनाते वक़्त अपनी लिमिट्स को ध्यान में रखें, आप एक दिन में जितने काम निपटा सकते हैं उससे अधिक काम ना मेंशन करें।
एक बात और…. टू-डू लिस्ट बनाने का मतलब सिर्फ वो पढना-लिखना और serious टाइप वाले काम की planning करना नहीं है, इसमें आप movie देखना, शौपिंग पे जाना, बच्चे को पार्क घुमाना जैसे light activities को भी लिखें, क्योंकि ultimately हर वो काम जो आपका समय ले रहा है उसे effectively और timely manner में पूरा करना बनता है |

Step 2) TO Do list के items के against उसे करने में लगने वाला time लिख लें:
ऐसा करने से पहले आपको इस बात का fair idea होना चाहिये कि actually आज आपके पास कितने time पे control है, और उसी दायरे में रह कर प्लानिंग करनी चाहिए।
For instance, on a typical day, आप जानते हैं कि स्कूल / office और डेली रूटीन एक्टिविटीज; जैसे खाना-पीना-सोना के बाद आपके पास 10 घंटे बचते हैं तो आपको इसी हिसाब से प्लान करना चाहिए कि आपकी टू-डू लिस्ट में इससे अधिक काम ना लिखें जाएं जिन्हें करने में कुल 10 घंटे से अधिक का समय लगे।
Ok, अब हम ऊपर वाली लिस्ट लेते हैं और उन tasks के सामने उन्हें पूरा करने में लगने वाला टाइम लिखते हैं:
केमिस्ट्री का असाइनमेंट करना है ———————–1 hr
स्कूल जाना है ——————————————8 hrs
ट्यूशन जाना है —————————————–1.5 hrs
क्रिकेट मैच खेलना है ———————————–1.5 hrs
ह्यूमन एनाटोमी स्टडी करना है ————————-1 hrs
Independence Day Speech तैयार करनी है———-3 hrs
इसमें स्कूल जाना और tuition पढने का टाइम आपके कण्ट्रोल में नहीं है, यानि आपके साढ़े नौ घंटे तो इसमें गए…बाकी 6 घंटे की नींद और एक-आध घंटा miscellaneous task के लिए अलग कर लिए जाएं तो आपके पास बचते हैं : 24 – (9.5+ 6 + 1.5) = 7 hrs.
इसीलिए हमने ऊपर example में school और tuition के अलावा बाकी कामों के लिए कुल 6.5 hrs का provision रखा है।
इस एक्सरसाइज में आप टाइम अलोकेशन में जान बूझ कर जितना टाइम लगे उससे कुछ अधिक टाइम अलोकेट करिए…क्योंकि very often हम जितना सोचते हैं उससे अधिक टाइम लगता है।
और साथ ही आप primary task को करने में लगने वाले supporting tasks का भी टाइम ध्यान में रखिये. For example: स्कूल तो 6 घंटे का है, लेकिन उसके लिए तैयार होना और आने जाने में लगने वाला टाइम भी consider करना होगा। इसलिए मैंने उसके लिए 8 आवर्स का टाइम दिया है।
जब आप practically ये लिस्ट बनायेंगे तो हो सकता है कि लिस्टेड टास्कस को पूरा करने में लगने वाला समय आपके पास मौजूद कुल समय से अधिक हो। ऐसा होने पर आप least priority वाले tasks को लिस्ट से हटा दें और बाकियों पे फोकस करें।








Step 3: आज की प्लानिंग करें – कितने बजे क्या करना है ये तय करें:
अब आपके पास To-Do List के tasks भी हैं और आपको ये भी पता है कि कोई particular task करने में कुल कितना समय लगने वाला है। अब आपको इसी हिसाब से अपना प्लान बनाना है कि जिस काम में जितना वक्त लगना है उसे उतना वक़्त दिया जा सके।
यहाँ पर आपको एक चीज और तय करनी होगी, वो ये कि — आज इन लिस्टेड टास्कस में से आपका MIT क्या है? यानि आपका आज का Most Important Task क्या है? 
इसे आप ऐसे तय करें- आप ये सोचें कि अगर आप इन सब कामों मे से बस कोई एक ही काम कर सकते तो वो क्या होता? और फिर उसी काम को सबसे पहले कम्पलीट करने की कोशिश करें। Of course, इसमें आप स्कूल या ऑफिस जाने के काम को नहीं टाल सकते लेकिन जो समय आपके कण्ट्रोल में है उसमे आपको इसे ही priority देनी चाहिए।
Friends, MIT का ख़त्म होना एक बहुत बड़ा मोराल बूस्टर होता है। अगर आज आप अपना वो most important task कर लेते हैं तो probably आज दुनिया के 99% लोगों से अधिक productive हो चुके होते हैं। और ये accomplishment आपको एक feel good factor देने के साथ-साथ आपका confidence और satisfaction level भी बढ़ा देता है।
इसलिए, कोशिश यही करिए कि आपका आज का जो सबसे ज़रूरी काम है वो और कामो से पहले पूरा हो जाए।
For example: अगर हम ऊपर की तो डू लिस्ट में इंडिपेंडेंस डे स्पीच तैयार करना सबसे ज़रूरी काम है, तो हम उसे ही अपने Today’s Plan में priority दें।
तो हमारी टुडू लिस्ट थी:
केमिस्ट्री का असाइनमेंट करना है ———————–1 hr
स्कूल जाना है ——————————————8 hrs
ट्यूशन जाना है —————————————–1.5 hrs
क्रिकेट मैच खेलना है ———————————–1.5 hrs
ह्यूमन एनाटोमी स्टडी करना है ————————-1 hrs
Independence Day Speech तैयार करनी है———-3 hrs
इसलिए हमारा प्लान कुछ ऐसा होगा:
Plan For The Day- 20-09-2016
  • 6:00 am – 7:00 am Start working on Independence Day Speech, collect the matter, etc
  • 7:00am- 3:00pm School
  • 3:30pm-5:30pm Complete the speech
  • 5:30pm-6:00pm Sports
  • 6:15pm-7:30 Home tuition
  • 8:00-9:00- Chemistry assignment
  • 10:00-11:00 Human anatomy

Some Other Productivity Tips Related to To Do List In Hindi

  • अपनी टू-डू लिस्ट हमेशा साथ लेकर चलें।
  • सबसे ज़रूरी काम करते समय मोबाइल साइलेंट कर दें।
  • अगर नेट का काम ना हो तो उसे भी ऑफ कर दें।
  • अगर आप लैपटॉप पे काम कर रहे हैं तो काम वाली विंडो के आलावा बाकी सभी विंडो क्लोज कर दें।
  • तत्काल ईमेल की ज़रूरत न हो तो उसे भी क्लोज कर दें।
  • काम में लगने वाली चीजों को एक ही बार सोच कर इकठ्ठा कर लें, ताकि बार-बार उठना न पड़े।
  • रूम में पर्याप्त रौशनी रखें।
  • जहाँ तक हो सके एकांत में बैठ कर काम करें।
  • बोरियत होने पर २-४ मिनट का ब्रेक ले लें।
  • चाहें तो, खाने-पीने, नहाने-धोने जैसे ज़रूरी काम को भी आप टू-डू लिस्ट में लिख सकते हैं और उनके लिए specific टाइम अलोकेट कर सकते हैं, I do like this.
अगर हमारा कोई टास्क छूट जाता है तो?
तो कोई बात नहीं। CEOs से लेकर आम इंसान तक जो टू डू लिस्ट बना कर काम करते हैं सबके टास्क कभी न कभी छूटते ही हैं। जो टास्क रह जाए उसे नेक्स्ट डे के प्लान में इनक्लूड करें और पूर करने की कोशिश करें।
अगर MIT भी पूरा नही हो पाता है तो?
This is very much possible, खासतौर से अगर आप कोई ऐसा काम कर रहे हैं जो आपने पहले कभी नहीं किया। मैं भी कई बार किसी काम के लिए जो time allocate करता हूँ उससे कहीं अधिक समय उसे पूरा करने में लग जाता है। MIT पूरा करना आपकी टॉप priority होनी चाहिए, इसलिए अगर वो उसके लिए allocate किये गए टाइम में नहीं हो पाता है तो आपको अपने बाकी के काम को टाल कर इसे ही पूरा करना चाहिए और अगर फिर भी ये ना हो पाए तो अगले दिन जल्दी से जल्दी इसे पूरा करना चाहिए।
अगर इस टूल से भी मेरी प्रोडक्टिविटी नहीं इम्प्रूव हुई तो?
अगर आप ठीक से इस टूल को follow करेंगे तो ऐसा होना possible ही नहीं है। तो इसका ये मतलब हुआ कि आप टूल को ठीक से यूज नहीं कर रहे और ये कहीं न कहीं आपके लैक ऑफ़ सेल्फ डिसिप्लिन की और इशारा करता है। ऐसे में आपको अपनी लाइफ के बारे में सीरियसली सोचना चाहिए |
दोस्तों, माना जाता है कि टू डू लिस्ट बनाने में लगाया गया 1 मिनट आपके 15 मिनट बचाता है इसलिए इस काम को तसल्ली से करिए और एक doable practical plan बना कर अपना दिन productive बनाइये।
मैंने experience किया है कि जब भी मैं टू-डू लिस्ट नहीं बनाता मेरा बहुत सारा समय इसी में चला जाता है कि ये करें कि वो करें…और बहुत अधिक टाइम वेस्ट हो जाता है। To-Do List बनाने से mind एक तरह से set हो जाता है कि हाँ, आज ये-ये काम करने हैं…और फिर दिमाग दुनिया भर के अनगिनत कामों के बारे में नहीं सोचता। जिसका सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि आपके व काम पूरे हो जाते हैं जो वाकई ज़रूरी हैं। यकीन जानिये, रोज To-Do List बनाने में लगने वाला 15 मिनट समय आपकी productivity को कई गुना बढ़ा सकता है और आपके साथ-साथ कई लोगों की ज़िन्दगी बदल सकता है। इसलिए आज से ही इसे अपनी लाइफ का हिस्सा बना लें और सफलता की डगर पर अपने कदम बढ़ा दें  |


  
                                                  रवि भास्कर सिंह 
                                                        धन्यवाद           



Dr Subhash Chandra Show: How to smartly utilise your time?

Wednesday, 14 September 2016

हिन्दी दिवस ( हिन्दी हमारी मातृभाषा)

हिन्दी दिवस  ( हिन्दी हमारी मातृभाषा)

 मातृभाषा जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा, किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है।

BHASKAR YOUNG GENERATION


भारत में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है लेकिन क्या आपको पता है कि हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है? भारत की मातृभाषा होने के बाद भी बोलचाल की भाषा में हिंदी का पतन होता जा रहा है | हिन्दी चिख - चिख कर कह रही है कि संविधान ने मुझे राजभाषा का दर्जा प्राप्त है फिर भी हमें लो अपनी जुबान पर लाने से डर है | अज हम आपको बताते हैं कि हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है गांधी ने हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था| जनमानस की भाषा भी कहा था | भारत देश में प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने निर्णय लिया कि हिंदी हि की राजभाषा होगी इस महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने और हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति 1993 पूरे भारत में इस दिन हर साल हिंदी दिवस के रुप में मनाया जाता है |
आप यह आर्टिकल http://bhaskaryounggeneration.blogspot.in/ पर पढ़ रहे हैं |
भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 363 (1) गया है किस संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी | संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा | चूंकि यह निर्णय 14 सितंबर को लिया गया था | इस कारन हिंदी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया है | लेकिन जब राजभाषा के रुप में से चुना गया और लागू किया गया तो गैर हिंदी भाषी राज्य के लोग इसका विरोध करने लगे और अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा |
दोस्त समस्या तो तब खरी होती है जब हम किसी से हिंदी में बात करते है तो वो हमें आपने से कम अस्तर का समझने लगत है | जो भी यह समझता है उसे भी पता होना चाहिए की वो कितना भी अच्छा अंग्रेजी बोलता होगा उसके दिमाग में पहले अपना मातृभाषा हि आता होगा |
आपको यदि यह ब्लॉग अच्छा लगा तो हमें इसके बारे में अपना विचार बताये |
आपका दोस्त
रवि भास्कर सिंह
धन्यवाद

Sunday, 4 September 2016

महान शिक्षाविद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन – जीवन परिचय

महान शिक्षाविद, महान दार्शनिक, महान वक्ता, विचारक एवं भारतीय संस्कृति के ज्ञानी डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। भारत को शिक्षा के क्षेत्र में नई ऊँचाइयों पर ले जाने वाले महान शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन प्रतिवर्ष 5 सितंबर को शिक्षकों के सम्मान के रूप में सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है।
बचपन से किताबें पढने के शौकीन राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरुतनी गॉव में 5 सितंबर 1888 को हुआ था। साधारण परिवार में जन्में राधाकृष्णन का बचपन तिरूतनी एवं तिरूपति जैसे धार्मिक स्थलों पर बीता । वह शुरू से ही पढाई-लिखाई में काफी रूचि रखते थे, उनकी प्राम्भिक शिक्षा क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल में हुई और आगे की पढाई मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में पूरी हुई। स्कूल के दिनों में ही डॉक्टर राधाकृष्णन ने बाइबिल के महत्त्वपूर्ण अंश कंठस्थ कर लिए थे , जिसके लिए उन्हें विशिष्ट योग्यता का सम्मान दिया गया था। कम उम्र में ही आपने स्वामी विवेकानंद और वीर सावरकर को पढा तथा उनके विचारों को आत्मसात भी किया। आपने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और छात्रवृत्ति भी प्राप्त की । क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास ने भी उनकी विशेष योग्यता के कारण छात्रवृत्ति प्रदान की। डॉ राधाकृष्णन ने 1916 में दर्शन शास्त्र में एम.ए. किया और मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में इसी विषय के सहायक प्राध्यापक का पद संभाला।
डॉ. राधाकृष्णन के नाम में पहले सर्वपल्ली का सम्बोधन उन्हे विरासत में मिला था। राधाकृष्णन के पूर्वज ‘सर्वपल्ली’ नामक गॉव में रहते थे और 18वीं शताब्दी के मध्य में वे तिरूतनी गॉव में बस गये। लेकिन उनके पूर्वज चाहते थे कि, उनके नाम के साथ उनके जन्मस्थल के गॉव का बोध भी सदैव रहना चाहिए। इसी कारण सभी परिजन अपने नाम के पूर्व ‘सर्वपल्ली’ धारण करने लगे थे।
डॉक्टर राधाकृष्णन पूरी दुनिया को ही एक विद्यालय के रूप में देखते थे । उनका विचार था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सही उपयोग किया जा सकता है। अत: विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए।
अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से भारतीय दर्शन शास्त्र कों विश्व के समक्ष रखने में डॉ. राधाकृष्णन का महत्त्वपूर्ण योगदान है। सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गई। किसी भी बात को सरल और विनोदपूर्ण तरीके से कहने में उन्हें महारथ हांसिल था , यही कारण है की फिलोसोफी जैसे कठिन विषय को भी वो रोचक बना देते थे। वह नैतिकता व आध्यात्म पर विशेष जोर देते थे; उनका कहना था कि, “आध्यात्मक जीवन भारत की प्रतिभा है।“
1915 में डॉ.राधाकृष्णन की मुलाकात महात्मा गाँधी जी से हुई। उनके विचारों से प्रभावित होकर राधाकृष्णन ने राष्ट्रीय आन्दोलन के समर्थन में अनेक लेख लिखे। 1918 में मैसूर में वे रवीन्द्रनाथ टैगोर से मिले । टैगोर ने उन्हें बहुत प्रभावित किया , यही कारण था कि उनके विचारों की अभिव्यक्ति हेतु डॉक्टर राधाकृष्णन ने 1918 में ‘रवीन्द्रनाथ टैगोर का दर्शन’ शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित की। वे किताबों को बहुत अधिक महत्त्व देते थे, उनका मानना था कि, “पुस्तकें वो साधन हैं जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं।“ उनकी लिखी किताब ‘द रीन आफ रिलीजन इन कंटेंपॅररी फिलॉस्फी’ से उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली ।
गुरु और शिष्य की अनूठी परंपरा के प्रवर्तक डॉ.राधाकृष्णन अपने विद्यार्थियों का स्वागत हाँथ मिलाकर करते थे। मैसूर से कोलकता आते वक्त मैसूर स्टेशन डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जय-जयकार से गूँज उठा था। ये वो पल था जहाँ हर किसी की आँखे उनकी विदाई पर नम थीं। उनके व्यक्तित्व का प्रभाव केवल छात्राओं पर ही नही वरन देश-विदेश के अनेक प्रबुद्ध लोगों पर भी पङा। रूसी नेता स्टालिन के ह्रदय में फिलॉफ्सर राजदूत डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के प्रति बहुत सम्मान था। राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अनेक देशों की यात्रा किये। हर जगह उनका स्वागत अत्यधिक सम्मान एवं आदर से किया गया। अमेरिका के व्हाईट हाउस में अतिथी के रूप में हेलिकॉप्टर से पहुँचने वाले वे विश्व के पहले व्यक्ति थे।
डॉ. राधाकृष्णन ने कई विश्वविद्यालयों को शिक्षा का केंद्र बनाने में अपना योगदान दिया। वे देश की तीन प्रमुख यूनिवर्सिटीज में कार्यरत रहे :
  • 1931 -1936 :वाइस चांसलर , आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय
  • 1939 -1948 : चांसलर , बनारस के हिन्दू विश्वविद्यालय
  • 1953 – 1962 :चांसलर ,दिल्ली विश्वविद्यालय
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की प्रतिभा का ही असर था कि, उन्हें स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया। 1952 में जवाहरलाल नेहरू के आग्रह पर राधाकृष्णन सोवियत संघ के विशिष्ट राजदूत बने और इसी साल वे उपराष्ट्रपति के पद के लिये निर्वाचित हुए।
1954 में उन्हें भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
1962 में राजेन्द्र प्रसाद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति का पद संभाला। 13 मई, 1962 को 31 तोपों की सलामी के साथ ही डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की राष्ट्रपति के पद पर ताजपोशी हुई।
प्रसिद्द दार्शनिक बर्टेड रसेल ने डॉ राधाकृष्णन के राष्ट्रपति बनने पर कहा था – “यह विश्व के दर्शन शास्त्र का सम्मान है कि महान भारतीय गणराज्य ने डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को राष्ट्रपति के रूप में चुना और एक दार्शनिक होने के नाते मैं विशेषत: खुश हूँ। प्लेटो ने कहा था कि दार्शनिकों को राजा होना चाहिए और महान भारतीय गणराज्य ने एक दार्शनिक को राष्ट्रपति बनाकर प्लेटो को सच्ची श्रृद्धांजलि अर्पित की है।“
बच्चों को भी इस महान शिक्षक से विशेष लगाव था , यही कारण था कि उनके राष्ट्रपति बनने के कुछ समय बाद विद्यार्थियों का एक दल उनके पास पहुंचा और उनसे आग्रह किया कि वे ५ सितम्बर उनके जन्मदिन को टीचर्स डे यानि शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। डॉक्टर राधाकृष्णन इस बात से अभिभूत हो गए और कहा, ‘मेरा जन्मदिन ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाने के आपके निश्चय से मैं स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करूँगा।’  तभी से 5 सितंबर देश भर में शिक्षक दिवस या Teachers Day के रूप में मनाया जा रहा है।
डॉ. राधाकृष्णन 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति रहे , और कार्यकाल पूरा होने के बाद मद्रास चले गए। वहाँ उन्होंने पूर्ण अवकाशकालीन जीवन व्यतीत किया। उनका पहनावा सरल और परम्परागत था , वे अक्सर सफ़ेद कपडे पहनते थे और दक्षिण भारतीय पगड़ी का प्रयोग करते थे। इस तरह उन्होंने भारतीय परिधानों को भी पूरी दुनिया में पहचान दिलाई। डॉ राधाकृष्णन की प्रतिभा का लोहा सिर्फ देश में नहीं विदेशों में भी माना जाता था। विभिन्न विषयों पर विदेशों में दिए गए उनके लेक्चर्स की हर जगह प्रशंशा होती थी ।
अपने जीवन काल और मरणोपरांत भी उन्हें बहुत से सम्मानो से नवाजा गया , आइये उनपे एक नज़र डालते हैं :
1931: नाइट बैचलर / सर की उपाधि , आजादी के बाद उन्होंने इसे लौटा दिया
1938: फेलो ऑफ़ दी ब्रिटिश एकेडमी .
1954: भारत रत्न
1954: जर्मन “आर्डर पौर ले मेरिट फॉर आर्ट्स एंड साइंस ”
1961: पीस प्राइज ऑफ़ थे जर्मन बुक ट्रेड .
1962: उनका जन्मदिन ५ सितम्बर शिक्षक दिवस में मानाने की शुरुआत
1963: ब्रिटिश आर्डर ऑफ़ मेरिट .
1968: साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप , डॉ राधाकृष्णन इसे पाने वाले पहले व्यक्ति थे
1975: टेम्प्लेटों प्राइज ( मरणोपरांत )
1989: ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा उनके नाम से Scholarship की शुरुआत
मौत कभी अंत या बाधा नहीं है बल्कि अधिक से अधिक नए कदमो की शुरुआत है।” ऐसे सकारात्मक विचारों को जीवन में अपनाने वाले असीम प्रतिभा का धनी सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन लम्बी बीमारी के बाद 17 अप्रैल, 1975 को प्रातःकाल इहलोक लोक छोङकर परलोक सिधार गये। देश के लिए यह अपूर्णीय क्षति थी। परंतु अपने समय के महान दार्शनिक तथा शिक्षाविद् के रूप में वे आज भी अमर हैं। शिक्षा को मानव व समाज का सबसे बड़ा आधार मानने वाले डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शैक्षिक जगत में अविस्मरणीय व अतुलनीय योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा। उनके अमुल्य विचार के साथ अपनी कलम को यहीं विराम देते हैं। सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन का कहना है कि,
जीवन का सबसे बड़ा उपहार एक उच्च जीवन का सपना है 

                                                                                                                धन्यवाद!

रवि भास्कर सिंह